सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

मेरे शहर का आशावाद

मैं हमेशा उस महानगर में जाकर
रास्ते भूल जाता हूँ
जिसके बारे में यह कहा जाता है
कि वह हमेशा दूर ही रहता है .

मैं इस शहर के रास्तों को
याद रखने की कोशिश बड़ी शिद्दत से करता हूँ
पर वे इतने पेचीदा हैं
कि मुझ जैसों को चकमा दे ही जाते हैं

रास्ते तो मेरे शहर के भी जटिल हैं
मैं उन्हें कभी याद नहीं रखना चाहता
पर वह भुलाये नहीं भूलते
किसी दुखती हुई रग की तरह सदा याद रहते हैं .

सुना है इस महानगर में बड़ी तादाद में
सपनों की सस्ते दामों पर तिजारत होती है
मेरे शहर में सपने देखने वालों को
लोग अक्सर सिरफिरा कहते हैं .

मैं अपने सपनों की तलाश में
महानगर की सड़कों पर
सही मंजिल की ओर जाती
सड़क की तलाश में खूब भटका हूँ ;

मेरा शहर महानगर में भटक भटका कर
थकेहाल लौटने वालों को कभी नहीं चिढाता
न चुभते हुए सवाल ही पूछता है
उसके लिए किसी का यूं लौटना अप्रत्याशित नहीं होता .

मेरा शहर मुझे कभी कभी उस लाचार पिता सा लगता है
जो तमाम उम्मीदों के खत्म हो जाने के बाद यही सोचता है
कि उसका बेटा कहीं नहीं जायेगा
एक न एक दिन चला आएगा वापस उसके पास .

1 टिप्पणी:

  1. सारी दुनिया भटक कर
    फिर पिता की यादों पर लटकना
    एक एक सपने पर चटकना
    कितना अच्छा है मटकना।

    जवाब देंहटाएं

मोची राम

छुट्टियों में घर आए बेटे

बेटे छुट्टियाँ पर घर आ रहे हैं ठण्ड उतरा रही है माहौल में   धीरे-धीरे खबर है , अभयारण्य में शुरू हो चली है लाल गर्दन वाले बगुलों की आम...