बरसों बरस की डेली पैसेंजरी के दौरान रची गई अनगढ़ कविताएँ . ये कवितायें कम मन में दर्ज हो गई इबारत अधिक हैं . जैसे कोई बिगड़ैल बच्चा दीवार पर कुछ भी लिख डाले .
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मोची राम
छुट्टियों में घर आए बेटे
बेटे छुट्टियाँ पर घर आ रहे हैं ठण्ड उतरा रही है माहौल में धीरे-धीरे खबर है , अभयारण्य में शुरू हो चली है लाल गर्दन वाले बगुलों की आम...
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सुबह सरकंडे की कुर्सी पर बैठ कर वह एक एक वनस्पति को निरखता माली के आने की बड़ी बेसब्री से बाट जोहता वह मौसम से अधिक माली क...
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एक समय ऐसा भी गुजरा जब मेरे शहर आया था श्रवणकुमार कांधे पर बेंगी को संतुलित करता उसके पलडों में धरे दृष्टिहीन और अशक्त माँ बाप...
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चुप रहो चुपचाप सहो समझ जाओ जो चुप रहेंगे वे बचेंगे बोलने वालों को सिर में गोली के जरिये सुराख़ बना कर मार डाला जायेगा खामोश रहने वालो...
सारी दुनिया भटक कर
जवाब देंहटाएंफिर पिता की यादों पर लटकना
एक एक सपने पर चटकना
कितना अच्छा है मटकना।