शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

सोने से पहले

सोने से पहले
किसी सपने को याद नहीं करता
किसी प्रार्थना के फलीभूत हो जाने की
कोई गलतफहमी नहीं पालता
निविड़ अंधकार की खिड़की से  
रोशनी की यादें नहीं आतीं. .

सो जाने की उम्मीद में  
नींद में बेधडक चलने का
कोई मंसूबा नहीं बांधता
भीतर के सन्नाटे में
हौले हौले बजती जलतरंग   
सुबह का इंतजार नही करती

सोने से ठीक पहले  
खोये हुए पंखों की तलाश
शुरू होती है नये सिरे से
कामनाओं की ऊन के गोले 
बन जाते हैं उलझ सुलझ कर  
रंगों का कोलाज़.

सो जाने के बाद  
उतारता हूँ दिन वाले मुखौटे 
चेहरे से खुरच खुरच कर
और लहूलुहान मन लिए
देर रात तक करता हूँ
अपने से फालतू सवाल.

सोते समय   
याद आती है मुझे गुलेल और
उसकी वजह से मरी चिड़िया
अपनी बचकानी क्रूरता पर  
हडबडा कर करवट लेता   
रचता हूँ गहरी नींद में उतरने का स्वांग.


  


 



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मोची राम

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