रविवार, 20 सितंबर 2015

यात्रा में ...


रेलगाड़ी धडधडाती हुई लगातार दौड़ रही है

वह एक ही जगह सदियों से खड़ा है

उसे सांझ ढले घर पहुँचने की कोई जल्दी नहीं

न उसे यह बात ठीक से पता कि

रेलगाड़ी वाकई कहीं जा भी रही है

गति यात्रा का पुख्ता सुबूत नहीं होती.

 

रेलगाड़ी धडधडाती हुई लगातार दौड़ रही है

बगल वाली पटरी पर एक और रेलगाड़ी  

उसके बगल वाली पर भी शायद एक 

जितनी पटरियां उतनी रेलगाडियां  

होड़ से बाहर खड़ा तमाशबीन  

बड़ी एहतियात के साथ मुस्कुराता है.

 

रेलगाड़ी धडधडाती हुई लगातार दौड़ रही है

रेलवे फाटक पर तैनात गेटमैन

ईंट जोड़ कर बनाये चूल्हे पर

जल्दी जल्दी सेंक रहा है  रोटियां

पटरी किनारे के फाटक पर   

भूख और रेलगाड़ी कभी भी आ धमकती है  .

 

रेलगाड़ी धडधडाती हुई लगातार दौड़ रही है

प्लेटफार्म पर अजब हलचल है

पर नहीं है सफर खत्म होने का कोई चिन्ह 

पूछताछ खिड़कियों पर बिना कुछ जाने बूझे

लोग कर रहे हैं अपने से गुपचुप बातें

बातें और यात्राएँ कभी नहीं थमती है.

 

रेलगाड़ी धडधडाती हुई लगातार दौड़ रही है

खिड़की के पार गांव घर याद धुआं  

सब भाग रहे हैं विपरीत दिशा में

वह देख रहा है कनखियों से

जलती बुझती रोशनियों का खेल  

हर यात्रा का अपना तिलस्म होता है.

 

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मोची राम

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