गुरुवार, 3 सितंबर 2015

हर शहर के पास होता है


हर शहर के पास होता है एक नाम
अपभ्रंशों से जुड़े अनेक नाम
कुछ धूलधसरित सड़कें 
चंद इधर उधर टिके प्रतीक चिन्ह
जिनके साथ जुड़ी होती हैं
अविश्वसनीय दंत कथाएं
इतिहास और किवदंतियां  .
हर शहर के पास होता है
अलग किस्म का बेहूदापन
बंजर धरती की हरीभरी यादें
तमाम तरह की उलटबांसियां
भदेस निकम्मेपन से भरे
महिमामंडित देवपुरुषों के प्रभामंडल .
हर शहर के पास होता है
अपने किस्म का अहंकार
चमगादडो से भरी भुतहा इमारतें
जिनमें कभी रहती थी शहर की नाकें
अब जिनके सिर पर पीपल का पेड़
राज ध्वज सा लहराता है.
हर शहर के पास होता है
सफ़ेद झूठ का अथाह जलाशय
जिसके जल में घुले होते हैं ऐसे सच
जो देखते ही देखते रंग बदलते हैं
कोई न कोई किस्सागो
इसमें तैरा जाता है अपने होने के  बोतलबंद सुबूत.
हर शहर के पास होता है
धरती की तह में समा कर
गुमशुदा हो जाने का खौफ
शहर अपने से अधिक
बेलचे और कुदाली पर यकीन करता है
वे उसे धरती की परतों में से ढूंढ लायेंगे . .
हर शहर के पास होता है
आसमान से छूती छत वाला सभागार
जहाँ रातदिन मसखरों का जमावड़ा रहता है
जो हर बात पर नाचते हैं उछल उछल कर
हर आशंका को धता बताते
शहर के होने का अनवरत जश्न मनाते .
हर शहर के पास होता है
अपने बने रहने का प्रगाढ़ आशावाद.

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मोची राम

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